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2 May 2024 · 1 min read

कामय़ाबी

वह जो खुद महफ़िलों की श़ान था ,
पर अंदर ही अंदर कुछ परेशान था ,

दौल़त श़ोहरत इज़्जत सब उसने कमाई ,
पर इस तरह ज़िंदगी उसको रास़ ना आई ,

इस द़ौर में उसने अपने उसका भला
चाहने वाले खो दिए ,
कुछ ज़िगरी दोस्त कुछेक दिल़ी रिश़्ते
उससे अलग हुए ,

सब कुछ हास़िल करने की च़ाहत में उसने अपनों को नज़रअंदाज़ किया ,
उसके ज़ेहन पर अपनी दौल़त और श़ोहरत का
नश़ा सा छाता गया ,

आज वो जब महफ़िलों से लौटता है ,
अपने आपको अपने सूने से महल जैसे घर में
अकेला सा पाता है ,

उसकी आँखों की नींद जैसे उड़ गई हो ,
और दिल का कऱार खो सा गया है।
शायद इस कामय़ाबी के नश़े में अपनी
ख़ुदी को गवाँकर अपने ज़मीर को भी खो चुका है।

Language: Hindi
1 Like · 75 Views
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