काकसार
फसल कटाई से बोनी तक
काकसार की धूम रहते,
गोत्रपूजा मंगलकामना सहित
जीवनसाथी भी चुनते।
अबूझमाड़ के माड़ियाओं का
ये पर्वत नृत्य महान,
युवक-युवती उन्मुक्त भाव से
करते नाच-गान।
जस-जस रात गहराती जाती
मादकता बढ़ती जाती,
नाच- गान संग प्रीत की धुन
रूह में चढ़ती जाती।
खेती के लिए स्थलों का चुनाव
बैगा सम्पन्न कराते,
बूंदों की बारात के संग – संग
बीज बोनी कर जाते।
वर्षा की फसलों में जब तक
दाने नहीं भर जाते,
अबुझमाड़िया युवक – युवती
जोड़े नहीं बनाते।
(मेरी सप्तम काव्य-कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से,,)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।