कांतिमय यौवन की छाया
दमकता रूप नहीं ,कांतिमय यौवन की छाया
आभा आसुरी -शक्ति नहीं, अप्रतिम प्रतिभा सी काया
पाश्चात्य नग्न नर्तकी नहीं,
चाहिए ‘अहल्या’ सी अति उत्तम
‘जीजा’ सी माता बन जा तू,
या ‘शकुंतला’ विदुषी अनुपम |
‘बछेंद्री’ सी निडर साहसी,
या फिर ‘मीरा’ सी अविनाशी
‘मनु’ सी थाम लो तलवार,
या भर लो ‘दुर्गा’ सी हुंकार
‘सुधा’ सी नृत्य कर, प्रारब्ध हरा दो
या फिर ‘गौरा’ समान हरित धरा दो |
‘क्युरी ‘ बन, कर आविष्कार,
‘गंगा ‘सरीखी निर्मल धार I
तू श्रद्धा, प्रेम ,उपासना की बन अधिकारी,
जूझ कर और बूझ कर
चल जीत ले अब तू सृष्टि सारी !