काँटों में खिलो फूल-सम, औ दिव्य ओज लो।
धोकर के मन की कालिख सद्प्रीति खोज लो
कांटो में खिलो फूल-सम औ दिव्य ओज लो
जिसने भी रक्त चूस सताया है दीन को
धिक्कारो ऐसे जीवन ,उस नर प्रवीण को
भारी है काल सब पर गुरुवाणी रोज लो
कांटो में खिलो फूल-सम औ दिव्य ओज लो
निज राष्ट्र तब सबल है जब ना दीनता छले
गम,भूख ,द्वंद,,चीखों, औ घुटन के सिलसिले
दूर हों समाज से उपाय ऐसे खोज लो
कांटों में खिलो फूल-सम औ दिव्य ओज लो
मनुजता-सुबोध चासनी का पान कीजिए
नेह-रूपमय हृदय ना अब विराम लीजिए
सघन एकता के राग का अमल सरोज लो
कांटों में खिलो फूल-सम औ दिव्य ओज लो
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बृजेश कुमार नायक
जागा हिंदुस्तान चाहिए एवं क्रौंच सुऋषि आलोक कृतियों के प्रणेता
06-05-2017
●”जागा हिंदुस्तान चाहिए” कृति का गीत।
●इस गीत को “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
●”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
चोज=सुभाषित