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2 Mar 2023 · 1 min read

“काँच”

“काँच”
बस टूटता हूँ तो चुभता हूँ
ख्वाब सरीखा होता हूँ
मेरी खामोशी में डूबकर देखो
है सागर सी गहराइयाँ
मैं कभी न टूटना चाहूँ
न देना चाहूँ दुहाइयाँ
तोड़ न देना ऐ जग वालों
वरना रग-रग में मैं दुखता हूँ
बस टूटता हूँ तो चुभता हूँ।

6 Likes · 3 Comments · 343 Views
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