क़तआ (मुक्तक)- काहे की फ़िक़्र…?
■ जबरन आशंकित लोगों के लिए…
“मुर्दे जहां के हैं उसी मिट्टी में गढ़ेंगे,
मुमकिन नहीं कभी जो भला उसका ज़िक्र क्यों?
जिनकी जड़ें ज़मीन से अच्छे से जुड़ी हैं,
उन बरगदों से पूछिए आंधी की फ़िक़्र क्यों??”
【प्रणय प्रभात】