कहीं आग तो कहीं धुआँ है ( काव्य संग्रह :- – सुलगते आँसू)
मैं जब भी….
अपने शहर, अपने देश, अपने वतन,
अपने प्यारे वतन हिंदुस्तान को देखता हूँ,
तो मेरे जहन में एक ही सवाल आता है ….
जो मेरे दिल पर हथोड़े की तरह बरसता …
और मेरा दिल छलनी छलनी हो जाता है….!!
मैं अक्सर सोचा करता हूँ…
हमारे शहर, हमारे देश , हमारे वतन को …
हाँ हमारे प्यारे वतन हिन्दुस्तान को…
आखिर हुआ किया है….?
पूरब से लेकर पश्चिम तक …
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक….
जहाँ भी देखो….
हर तरफ हर जगह…
कहीं आग तो कहीं धुआँ है…..
कहीं बमों का शोर तो कहीं गोली का धमाका है …
मर चुकी है इन्सानियत, जिन्दा सिर्फ हैवानियत का बोलबाला है….
और हमारे हिन्दुस्तान की जमीन…
मासूम बेगुनाह इन्सानो के खून से रंग चुकी है…
हर किसी की निगाहों में एक डर है…
हर कोई सहमा सहमा सा है…
जाने कब, कहाँ, किधर से गोली की बौछार हो जाये….
या कब बमों के धमाकों से आसमान गूँज उठे…
और एक बार फिर वही मंज़र दिखने लगे….
जहाँ भी देखो…
हर जगह हर तरफ….
कहीं आग तो कहीं धुआँ है….
आखिर हमारे हिन्दुस्तान को हुआ किया है ….!!
क्यों जल उठा है हमारा हिन्दुस्तान….
नफरतों की आग में….
धर्म मजहब व साम्प्रदायिकता की आग मैं…
जातिवाद व भाईवाद की आग में …
क्यों , आखिर क्यों जल रहा है हमारा हिन्दुस्तान…!!
ऐसे हिन्दुस्तान का ख्वाब तो नहीं देखा था…
हमारे पूर्वजों ने….
वीर क्रांतिकारियों व स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानियों ने….
जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगा कर…
हमें गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया…
अपने प्यारे वतन हिंदुस्तान को आजाद कराया…!!
नहीं, ये हरगिज नहीं हो सकता…
जहाँ खून की होली खेली जाती हो….
इन्सानी लाशों से होलिका दहन होता हो….
खून के आंसुओं से दिवाली का दिया जलता हो…
जहां हैवानियत व हिंसा का नंगा नाच होता हो…
वो जगह वो शहर वो देश…
शांति व अहिंसा के पुजारी….
हमारे बापू महात्मा गांधी का देश नहीं हो सकता…!!
हमारा प्यारा वतन हिन्दुस्तान ऐसा नहीं हो सकता….
तो फिर क्यों…
हर कोई ये सब बर्दाश्त कर रहा है…!!
कोई कुछ बोलता क्यों नहीं…
क्यों हर कोई चुप है, डरा है, सहमा-सहमा सा है…
आखिर हमारे हिन्दुस्तान को हुआ किया है…
कहीं आग तो कहीं धुआँ धुआँ है….!!