(कहानीकार) “मुंशी प्रेमचंद”
चलो मुंशी प्रेमचंद जी की बात करें,
जी भरकर हम उनको याद करें।
नमक का दरोगा का सा पिता बनें,
और गरीब के कफन का इंतजाम करें।।
बड़े घर की बेटी , हामिद सा पोता,
दो बैलों की अद्भुत कथा, पढ़ें सुनें।
कप्तान साहब और, झूरी सा बन इंसान,
बूढ़ी काकी की सेवा, गोदान का स्वप्न बुनें।।
इन्हीं के बीच जीवन भर ‘चंद’ उलझकर,
फटी पोशाक व फटे जूते भी पहनते रहे।
कभी दरवाजे पर फटा जर-जर पर्दा टाँग,
कलम चलाते चलाते स्याही से सूखते रहे।।
उपेक्षित समाज का वो बनके आइना,
कष्ट के विष को अमृत समझ पीते रहे।
जग तालियाँ बजा वाह वाह करता रहा,
हो मौन भीतर दुखित पर बाहर हँसते रहे।।
-गोदाम्बरी नेगी