कहां पता था
सोचा था #उजियारा होगा
हाथ में हाथ तुम्हारा होगा
अरुणोदय की नव प्रज्ञा से
पथ आलोकित सारा होगा
कहां पता था मधुबन की सब कोंपल बीनोगी आकर
मेरे उपवन के भविष्य को पल में छीनोगी आकर
मृदुल भाव से अभिसिंचित कर महकाया था जो आंगन
घृणा द्वेष षड्यंत्रों के विष उसमें घोलोगी आकर
हाय कहां सोचा था हमने प्रातः में अंधियारा होगा
सोचा था #उजियारा होगा
हाथ में हाथ तुम्हारा होगा
#अरुणोदय की नव प्रज्ञा से
पथ आलोकित सारा होगा
कहां पता था अब #दोपहरी शूल समान चुभेगी मुझको
#दोपहरी की पछुआ बनकर सर्प समान डसेगी मुझको
हमने सोचा था तुम #शीतल छाया बनकर आओगी
नहीं पता था तुम #अग्नि का स्वयं सूर्य बन जाओगी
हाय कहां सोचा था #प्रज्वल सब संसार हमारा होगा
सोचा था #उजियारा होगा
हाथ में हाथ तुम्हारा होगा
#अरुणोदय की नव प्रज्ञा से
पथ आलोकित सारा होगा
अनथक श्रम से क्लान्त बदन जब #संध्या को घर आयेगा
#बाहुपाश में प्रिय #मधुराधर से #रसपान करायेगा
मेरे मन की सारी गांठें धीरे धीरे खोलेगा
अपनी मधुर मधुर वाणी से रस कानों में घोलेगा
कहां पता था #दुग्ध #कुम्भ में #दधि सा मिलन हमारा होगा
सोचा था #उजियारा होगा
हाथ में हाथ तुम्हारा होगा
#अरुणोदय की नव प्रज्ञा से
पथ आलोकित सारा होगा