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4 Oct 2023 · 1 min read

गए वे खद्दर धारी आंसू सदा बहाने वाले।

कहां गए वे खद्दर धारी आंसू सदा बहाने वाले।
बदल गई भाषा बाणी सबसे प्रेम लूटाने वाली ?
गहरी खामोशी है छाई मुख से शब्द न फुट रहे।
आखिर होंठ सीले क्यो है संविधान बचाने वाले।।

करण वेदना से लत-फत विप्र सुदामा की कुटिया।
आंखों के झरते आंसू से खुद के स्वप्न सजाने वाले।।
मानवता इंसाफ मांगती है स्वारथ की बस्ती में।
कहां गई हूंकार तुम्हारी जाति जाति चिल्लाने वाले।।

” निकुम्भ “

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