कहाँ जा के ढूंढें वजह अब खुशी की
गज़ल
122……122…….122……122
सभी आश धूमिल हुईं जिंदगी की!
कहाँ जा के ढूंढें वजह अब खुशी की!
ये दुनियाँ नहीं अब रही रहने लायक,
जरूरत है हमको नये घर जमीं की!
किया प्यार उसने मुझे टूटकर क्यों,
न जानूं न पूछूं वजह आशिकी की!
तुम्हीं से मिली रोशनी मुझको यारो,
जरूरत नहीं अब मुझे चांदनी की!
तेरा साथ मैंने है पाया तो जाना,
कमी अब नहीं जिंदगी में किसी की!
जो शामिल हुआ मेरे गम के दिनों में,
बराबर खड़े होंगे उसकी खुशी में!
कि प्रेमी दिया दिल तुम्हें जां भी देंगे
मुहब्बत तुम्हीं हो वजह जिंदगी की!
…. ✍ प्रेमी