कसम खा ले तून इंसान
कसम खा ले तून इंसान
नहीं बनेगा कभी हैवान
चाहे कितनी विपदा आये
नहीं डोलेगा तेरा ईमान
दुनिया तुझ सी ही तो है
जैसा तून वैसा उस का रूप
क्या फर्क है तुझ में और उस में
वही माट्टी और वो ही है खून
बस अपना तून दिल साफ़ रख
यही तेरा करेगा जीवन सफल
अच्छा करके अच्छा ही पायेगा
बुरा किया तो वो तेरे सामने आएगा
इस जन्म न फल पा सका भूल से
तो भुगतने फिर दोबारा जरूर आएगा
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ