कव्वाली :- मेरे मुहम्मद की नजर
कव्वाली :- मेरे मुहम्मद की नज़र
अनुज तिवारी “इंदवार”
ये नज़र है मुहम्मद साब की !
ये नज़र है मेरे आफ़ताब की !
जो मक्का में है मदीना में है ;
वो हाजी में है नाजमीना में है !
ये पाकी है ये सच्ची है
मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र । -5
मेरे मुहम्मद की नज़र ,पाकी नज़र पाकी नज़र । -3
मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र ! -3
बन्दे मैं इस दरबार में ..बन्दे मैं इस दरबार में …
बन्दे मैं इस दरबार में तेरी इनायत क्या करूँ ! -5
मेरे मुहम्मद की नज़र मुझको मुकम्मल हो गई ।।-3
देख जब रहमत मिली मुझको मुहम्मद साब की ।
रात काली कट गई , खुशहाल महफिल हो गई ।।
मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र ! -3
मेरे मुहम्मद की नज़र ,पाकी नज़र पाकी नज़र ! -3
मेरे मुहम्मद की नज़र, मेरे मुहम्मद की नज़र -3
इस भरे दरबार से , कोई न खाली जाएगा …..
कोई न खाली जाएगा कोई न खाली जाएगा ! 3
इस भरे दरबार में हैं आप भी और आप भी हैं ।-5
ख्वाब भी हैं , रंज , उल्फ़त , आश भी है ,राज़ भी हैं ।।-3
जो यहां खालिस हुए सब ख़ाक खूदी हो गए ,
है ख़बर सब कुछ जिन्हें मेरे मुहम्मद साब ही हैं ।।
मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र -3
मेरे मुहम्मद की नज़र ,पाकी नज़र पाकी नज़र -3