कवि
सूर्य भी निष्तेज-सा यदि आप कवि,
बन बढ़े, हिंसा छटे, तुम प्रेम छवि।
कहें ‘नायक’ चेत गह निज राष्ट्र का
प्राण – धन सह सत्य का संदेश कवि।
कवि वही जो चलता सत्य- कृपाण पर।
प्रेम बन छा जाता द्वंदी बाण पर।
जागरण दे राष्ट्र को ‘नायक बृजेश’।
मुस्कुराहट लिख दे निद्रित प्राण पर।
सजग करे जो राष्ट्र को कविराज है।
वही सच्चा है जो चेतन साज है।
रीढ़ वह,शोषित को जो ऊपर उठा
देता समता-सत् करे शुभ काज है।
अमल भाव से हृदय भरे जो,वह ही कवि है।
निशा छाॅंट दे,वह रचना ज्ञानोदय रवि है।
पार्थ हुआ चैतन्य, कृष्ण से गीता सुनकर।
जागा मानव ही क्षिति पर सद्बोधी -छवि है।
पं बृजेश कुमार नायक