कवि मन
मन की बात
कवि मन सागर की तरह, लहरें उठें अपार।
कवियों का चिंतन मनन,गढता विविध विचार ।।
करता ऐसी कल्पना ,बन जाता इतिहास।
खोज परक कवि साधना,मानव करे विकास।।
मन की कहता काव्य मय,ज्यों तीखी तलवार।
हास्य व्यंग्य माध्यम बना,सिखलाता व्यवहार।।
कवि मन कहता है सदा, देश धर्म की बात ।
सुनने बालो के लिए,ज्ञान स्रोत दिखलात।।
कवि को सुन जो मानता,वह पथ सच्चा पाय।
अनसुन करते लोग जो,बाद खूब पछताय।।
तुलसी ने मन की लिखी,राम हृदय आधार।
मानी नहि कारण बड़ा, दुखी आज संसार ।।
बिना सनातन धर्म के ,नहीं जगत उपचार ।
निज भाषा अरु धर्म का,करना मिल विस्तार।।
राजेश कौरव सुमित्र