कविता
अनचाहा कुछ घटता है
मन खुद ही कलम पकड़ता है
संवेदना के स्पंदन से
फूट फूट कर रिसता है
कुछ कही अनकही बातों से
जब भीतर दर्द उपजता है
हृदय ग्लेशियर से पीड़ा
जब पिघल-पिघल कर बहती है
उस शब्द– सुधा के बहाने से
सिंचित होते हैं भाव कई
फिर जो गीत जन्मता है
वह कविता ही कहलाता है।