कविता
सकते जैसी हालत है क्यों?
क्यों तीखे लगे सवाल कहो!
शब्द भाव क्यूं लगें नुकीले?
क्यूँ कथनी लगे करवाल अहो!
रक्तिम रचनाओं का कारण,
हैं ज़ख्म ‘हमारी’ मोहब्बत के।
शब्द तुम्हें बस,दिखते क्यों हैं?
क्यूँ दिखते न अश्रु गालों पर!
तेरी खंजर जैसी बातें चुभती
मेरे गहरे दिल के छालों पर।
ग़म की स्याही से भर डाला,
मेरे कोरे मन का पन्ना-पन्ना।
तेरी घातों के दो पाटों में,
बन अन्न घुन पिस गए हम बन्ना!
तेरी खातिर हमने मारी
इच्छा चाहत तमन्ना।
फिर कैसे तेरा मन सूखा-सूखा,
कहो कैसे सूखी प्रसन्ना?
शब्द तुम्हें बस,दिखते क्यों हैं?
क्यूँ दिखते न अश्रु गालों पर!
तेरी खंजर जैसी बातें चुभती
मेरे गहरे दिल के छालों पर।
विरह भट्ठी में तो मैं हूँ साजन,
मेरे शब्दों में है ज्वाला।
शम्मा बन मैं जलती आई,
तुमने भोगी सुख की हाला।
महज़ कविता के भावों से,
तुमने खुद को टूटा माना।
बिलख रही मैं हर पल हर क्षण,
कभी व्यथा मेरी को न पहचाना!
शब्द तुम्हें बस,दिखते क्यों हैं?
क्यूँ दिखते न अश्रु गालों पर!
तेरी खंजर जैसी बातें चुभती
मेरे गहरे दिल के छालों पर।
कायनात के रोने का हाय!
भय तुम्हें आज सताता है।
मेरा पैरों में तेरे गिरकर रोना,
क्या तुम्हें याद नहीं आता है।
रीते मेरे ख्वाब सभी
ग़म से बोझिल मेरी कविता।
यादें तुम्हारी चील बन नोचें,
नहीं भूल मैं पाऊँ जो बीता।
शब्द तुम्हें बस,दिखते क्यों हैं?
क्यूँ दिखते न अश्रु गालों पर!
तेरी खंजर जैसी बातें चुभती
मेरे गहरे दिल के छालों पर।
नीलम शर्मा ✍️