कविता
गरीबी
गरीबी का आलम इस कदर बढ़ रहा है
कि खौफनाक मंजर सबको जकढ रहा है
आदमी हीआदमी के खून का प्यासा
चंद रुपयों की खातिर झूठ गढ़ रहा है
नफरतों की चादर में रिश्ते हो रहे गुम
प्रेम छोड़ पैसों की ओर जुड़ रहा है
इज्जत और सम्मान दामों में खेलते हैं
हैवानियत का नशा सर पर चढ़ रहा है
बचपन अनाथ बेसहरा प्यार को तरसता
दोष किसका माँ का आंचल सिकुढ रहा है
भाई बहिन मातापिता गुरू शिष्य के नाते
लोभ और मायामें सब उड़ रहा है
नमिता शर्मा