कविता
बाल गीत (धरती)
धरती माता हैं सच्चाई ।
सारे जग की करें भलाई।।
अन्न दान करती रहती हैं।
भूख मिटाती ये चलती हैं।।
सकल जीव हैं वसुंधरा पर।
सबका घर है इसी धरा पर।।
पृथ्वी के नीचे ही जल है।
रत्नों का भंडार सकल है।।
बिन धरती के नहिं कुछ सम्भव।
सारा जीवन सदा असंभव।।
धरती ही हरियाली लाती।
सुख सुविधा धरती से आती।।
राम कृष्ण की य़ह धरती है।
सबकी सेवा यह करती है।
जिसको धरती लगती प्यारी।
वृत्ति दृष्टि उसकी हितकारी।।
दोहा
धरती पर हर कर्म का,होता नित्य विधान।
पृथ्वी ही सर्वस्व है,यही रसों की खान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।