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6 Mar 2022 · 1 min read

कविता

पल भर में बूढ़ी हो जाना
पल भर में बचपन नादानी ।।
पल भर में बचपन से निकले
पल भर में फिर मिले जवानी ।।
पल भर में अम्बर को छूती
पल भर में सागर तल रानी ।।
पल भर में रेगिस्तां है ये
पल भर में पानी ही पानी ।।
पल भर में परकर्ती है ये,
पल भर में परवर्ती है ये,
पल भर में आकर्ती है ये,
पल भर में शून्य सी जानी ।।

पल भर में बूढ़ी हो जाना
पल भर में बचपन नादानी ।।

इसका परिचय व्याख्यान बड़ा है,
इस कविता का ज्ञान बड़ा है,
इसका तो उत्थान बड़ा है ,
कवि इसका सम्मान बड़ा है ,
इसके विरुद्ध विरोधी बहुत हैं,
पर! कवि ले शब्द का बाण खड़ा है ।।
कवि हवा है, कवि धरा है ,
कवि है सूरज कवि है चंदा ,
कवि पवित्र बहती गंगा,
कवि है जैसे वतन तिरंगा ।।

कवि गुलाबों सा खिलता है ।
कवि किताबों में मिलता है ।।
कवि सर्वदा उज्जवल है ।
पर! कवि बस ख्वाबों में ढलता है
भला क्या और तुम्हें बतलाऊं मैं
हर कवि कविता की यही कहानी

पल भर में बूढ़ी हो जाना
पल भर में पानी ही पानी ।।

Abdul Rahim Khannn..

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 504 Views
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