कविता
कविता
माना कि तुम सागर हो मैं नहीं,
पर!कशिश इतनी है की—-
इक दिन तो दूरी मिटाओगे,
बरखा बनके ही सही
मिलने तो आओगे,
कब तक खामोश रहोगे?
कभी तो अपनाओगे!!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कविता
माना कि तुम सागर हो मैं नहीं,
पर!कशिश इतनी है की—-
इक दिन तो दूरी मिटाओगे,
बरखा बनके ही सही
मिलने तो आओगे,
कब तक खामोश रहोगे?
कभी तो अपनाओगे!!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,