कविता
?सागर?
बांहे फैलाए खड़ा आसमां,
सागर ने हिये में है भरा।
वर्षा बनकर आ जाओ मिलने,
मेरे साजन प्यारे सागर।
विरह की पीड़ा में घुट-घुट कर,
राह निहारे सरिता तेरी।
छिपे हुए हृदय में मेरे भाव फूल,
चुभते हैं उर में मेरे विष शूल।
हे!सागर तुम शांत हो गम्भीर हो,
पर सागर की लहरें हे अधीर।
सागर तू विशाल और अनंत है,
तेरी गहराई का कोई तोल नहीं।
तुझमें समाया हुआ भण्डार है,
तेरी महिमा सागर अपरम्पार है।
सुषमा सिंह “उर्मि,,