कविता
किसी की पीर किसी की व्यथा हूँ ,
जीवन की एक अकथ-सी कथा हूँ |
कविता कह रहे हो तुम मुझे मगर ,
जिसने गढ़ा है मै उसका पता हूँ |
गम की आँखों से झरके बही ,
कभी उफनी कभी सिमट के रही |
कह गई जो कुछ बातें अनकही,
भावों की उमड़ी हुई सरिता हुँ |
असंभव को जो संभव बनाती ,
पथ भूले को नई राह बताती |
जीवन में जो नई ज्योति जलाती,
जल-जल कर मिटती दीपशिखा हूँ|
कभी बहारें मिली कभी बेकसी ,
मगर जिसने न की कभी खुदकुशी |
बयां जिसको कोई कलम करती ,
सच कहने वाले की वह खता हूँ |
– प्रतिभा आर्य
चेतन एन्क्लेव (अलवर)