कविता
“पिता”
आँगन की फुलवारी हरदम
लहू दे सींचते हैं जो,
दु:ख हरते पोषण करते
सबल सशक्त पिता हैं वो।
प्रसव समय दे मातु सहारा
परिवार का आधार बने ,
रोटी कपड़ा मकान देकर
अनंत प्यार सुखधार बने।
अँगुली थाम चलना सिखाया
गिरा ज़मीं गोद उठाया ,
संस्कारों का पाठ पढ़ा कर
अनुशासन हमें बताया।
दाखिले के लिए जो दौड़े
भरी दुपहरी खड़े रहे ,
शुल्क जमा की चैन बेचकर
सपन सँजोए अड़े रहे।
जब लायक संतान बनी तो
घर,-आँगन खुशियाँ छाईं,
भीगी पलकें बेटी देकर
पर बेटी बहू बनाई।
पिता का धैर्य महादान है
नाम जिसका पहचान है,
औलाद जिसका अभिमान है
जीवन दाता महान है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर