कविता
मेरे कमरे की खिड़की खुलते ही
आता है अंदर एक हवा का झोंका
जो कर देता है अस्त – व्यस्त
उन सभी पन्नो को जिनमें
लिखी है मैंने तुम्हारे ऊपर कविताएं ।
मेरे सामने तुम्हारा आना उस
खिड़की खुलने जैसा ही है ।।
– चिंतन जैन
मेरे कमरे की खिड़की खुलते ही
आता है अंदर एक हवा का झोंका
जो कर देता है अस्त – व्यस्त
उन सभी पन्नो को जिनमें
लिखी है मैंने तुम्हारे ऊपर कविताएं ।
मेरे सामने तुम्हारा आना उस
खिड़की खुलने जैसा ही है ।।
– चिंतन जैन