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4 Jul 2018 · 1 min read

कविता

रात के कदमों में झाँझर मत बाँधना
दबे पांव आने दो
नींद में जो खोए हैं ना ख्वाब मेरे
रूनझुन से उनकी कहीं जाग ना जाएं
मन अवचेतन संजो रहा है उम्मीदें कई
खोने दो….खूब पिरोने दो, नव प्राण जीवन में…
हसरतें उठाकर पलकें
कल देखेंगी उजले सवेरे
धीरज धर, भोर की पहली किरण से…
छट जाएंगे बादल घनेरे।
निधि भार्गव

Language: Hindi
378 Views
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