कविता –सच्चाई से मुकर न जाना
जीत मिलेगी तह तक जाना ।
सच्चाई से मुकर न जाना ।।
कुछ सुखभरी सुहानी यादें
बेबस दुखियों की फ़रियादें
है धूमिल कुछ रूप अनोखे
मुस्कानों में पलते धोखे
जीवन भर मत फ़सते जाना ।
सच्चाई से मुक़र न जाना ।।
अनसुलझे जीवन के मुद्दे
क्यों न खुशियों में दुख भर दे
पर रुकना मत बिना बिचारे
न जाने कितने हैं हारे
जीत मिलेगी तह तक जाना ।
सच्चाई से मुक़र न जाना ।।
आशाओं में खोकर अनुपम
सो जाते जड़ जीव बिहंगम
विश्वासों का दीप जलाता
रवि, मयंक भी चलता जाता
प्रगतिशीलता को अपनाना ।
सच्चाई से मुक़र न जाना ।।
जब सुख में हो जाये देरी
आये दुख की रात घनेरी
मिले हार के ढेर लतीफे
क्यो न बढ़ जाये तकलीफें
लक्ष्य मिलेगा बढ़ते जाना ।
सच्चाई से मुक़र न जाना ।।
ये समाज के बबंधन कोरे
त्रुटियों के जंजाल बटोरे
स्वार्थ भरे रिस्तों के धागे
ढह जाते हैं दुख के आगे
दुर्दिन हो पर साथ निभाना ।
सच्चाई से मुक़र न जाना ।।
Rakmish Sultanpuri