कविता मुरझाया चमन
कविता-मुरझाया चमन
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मुरझाया चमन है,पुहुप कैसे खिले,
डालियां डोले हैं मगर—
दरख़्त में पत्ते हवा से,
लहर-लहर झूमते हिलें।
हृदय कुम्हलाया तो,
सुर,राग,संगीत कैसे करे
कुसुम-कलिकांए भी बेजार हैं—
खुशियां अपनी हम कैसे ,बंया करें।
आखिर दिल ही तो है,
वेदना हम कैसे कहें
कांटो का सफर तय किया—
कौन समझाऐ जमाने को,
हमने गम कैसे सहे!!
पथिक का पथ निहारती रही,
एक आशा के साथ
मिलेगा कभी फूलों का गुलिस्तां–
वाट!जोहती रही ,ताउम्र कभी तो,
थामें आकर वो हाथ!!!
इंतजार करती रही,
किसी सपने की तरह
कभी तो हकीकत हो–
अब!खत्म हो ये सदियों का,
अपने का विरह!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,क