कविता माँ काली का गद्यानुवाद
काली
‘छिप गये तारे गगन के
बादलों पर चढ़े बादल
काँपकर ठहरा अंधेरा
गरजते तूफान में।
सत-लक्ष पागल प्राण छूटे
जल्द कारागार से
द्रुम-जड़ समेत उखाड़कर,
हर बला पथ की साफ करके
तट से आ मिला सागर
शिखर लहरों के पलटते
उठ रहे हैं कृष्णा नभ का
स्पर्श करने के लिए द्रुत
किरण जैसे अमंगल की,
हर तरफ से खोलती है
मृत्यु-छायाएँ सहस्त्रों,
देहवाली घनी काली
आधि-ब्याधि बिखेरती
नाचती पागल हुलसकर
आ जननि, आ जननि, आ, आ!
मृत्यु तेरे श्वास में है
चरण उठाकर सर्वदा को
विश्व एक मिटा रहा है।
समय, है तू है सर्वनाशिनी
आ जननि, आ जननि, आ, आ!
साहसी जो चाहता है दुःख
मिल जाना मरण से,
नाश की गति नाचता है
मां उसी के पास आई!’
(स्वामी विवेकानंद द्वारा अंग्रेजी भाषा मे लिखित कविता ‘द मदर काली’ का हिंदी पद्यानुवाद)
सन्दर्भ-उक्त पंक्तियाँ स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित अंग्रेजी भाषा में कविता ‘द मदर काली’ का सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा किया गया हिंदी पद्यानुवाद है।
प्रसंग-उक्त पंक्तियाँ स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी द्वितीय कश्मीर यात्रा के दौरान प्रवास के समय लिखीं थी जब उन्हें माँ काली की साधना करते हुए उनके साक्षात दर्शन प्राप्त हुए और उसी दर्शन के अंधेरे में उन्होंने कलम ढूंढकर उक्त दर्शनाभूति को लिपिबद्ध किया। यह कविता मूलतः अंग्रेजी भाषा में लिखित है जिसके पद्यानुवाद महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने किया।
व्याख्या- माँ काली के आगमन की आहट से आसमान के सभी तारे छुप गए और संपूर्ण आसमान को घने बादलों ने ढक लिया बादल इतने घने थे मानो बादल के ऊपर बादल चढ़े हों बादलों के द्वारा आसमान को ढक लेने से इतना घना अंधेरा छा गया जैसे बादलों की गड़गड़ाहट से भयभीत होकर अंधेरा सहम कर स्थिर हो गया है। इस दृश्य को देखकर सैकड़ो लाखों प्राण जीवन-मरण रूपी कारागार से मुक्त हो गए जिन्हें वर्षों से इस दृश्य की लिप्सा थी। महातूफान में बहुत बड़े-बड़े वृक्ष जड़ सहित उखड़ कर धराशाई हो गए ऐसा लग रहा था कि समुद्र अपने तटों से मिलने के लिए वर्षों से व्याकुल है। वह इस मिलन में आने वाली प्रत्येक बाधा को हटाते हुए तट से आकर मिल रहा है। लहरों के ऊंचे-ऊंचे शिखर तटों से टकराकर अपने आगमन की सूचना दे रहे हैं। मृत्यु के छाया के समान काले बादलों की टकराहट से अमंगल किरण तेज गति से उठती है जैसे सैकड़ो भुजाओं वाली कोई देवी आनंद से पागल होकर नाचती हुई लाचार बीमारियों को बखेरती हुई आगे बढ़ रही है। हे! माँ आओ! मैं आपके इस रूप का आवाहन करता हूँ। हे! माँ तेरा नाम आतंक है! तेरी हर सांस में मृत्यु का संबोधन है! यदि तू अपना एक पैर उठाकर भूमि पर पटक दे तो समस्त सृष्टि हमेशा के लिए समाप्त कर सकती है। तू! सबका विनाश करने वाले समय के समान है। जो व्यक्ति दुःख के नाम कुख्यात डराने वाली मृत्यु से हमेशा मिलना चाहता है और तेरे ही समाज नाश की नाच की गति से नाच सकता है तू! उससे मिलने अवश्य आती है। हे! माँ तेरे इस विकराल स्वरूप का मैं पुनः आवाहन करता हूँ।
-गद्यानुवाद प्रयास
©दुष्यन्त ‘बाबा’ की कलम से साभार
माँ काली की उग्र छवि गूगल से साभार कॉपी