कविता- बेटी
बेटी है स्वर्ग धरा का ,
मानव का है नन्दनवन ।
ेटी अंधविश्वास का अन्त है ,
बेटी है नव परिवर्तन ।
बेटी आधुनिकता का आगाज है ,
बेटी माँ का है दर्पण ।
बेटी से तर्पित श्राद्धित,
तर जाते हैं सब पित्रगण ।
बेटी है सर्वश्व जहाँ का ,
सुरतरुओं में है चन्दन ।
बेटी है अभिलाषा हमारी ,
बेटी ईश का है वन्दन ।
बेटी है वरदान प्रभू का ,
हर बेटी का अभिनन्दन ।
बेटी है परिवार की इवादत ,
बेटी माँ – बाप की धड़कन ।
कृपलानी , कर्णम , चावला ,
गीता आदि का अभिनन्दन ।
जब बेटी का शोषण होता ,
तब काँप जाता है मन ।
जब कोई बेटी रहे अशिक्षित ,
तब उसको लगता बन्धन ।
बेटी कोई न रहे अशिक्षित ,
न समझें हम पराया धन ।
बेटी मनुष्य का अस्तित्व है ,
बेटी सबका है जीवन ।
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डाँ तेज स्वरूप भारद्वाज