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30 Aug 2019 · 1 min read

कविता –बढई,कारीगर

बढई भी सृजनकर्ता सामान बनाता है
कारीगरी में अपने नव स्वप्न लाता है.
हाथों में हुनर धर्ता पूर्वजों का पेशा है
अनुभवी उत्थान में रंग ध्यान पाता है.
महके डिजाईन तो कारीगरी झलकती
आँख भी पल भर उठे सह नाता है .
पा सामान घर महल बन जाता है
देखें उसके सपनों का यतन भाता है.
देख अस्तित्व की अधूरी गाथा जानी
जग ऐश्वर्य में भर पेट गाथा नाता है.
स्वरचित रेखा मोहन 30/8/१८

Language: Hindi
1 Like · 321 Views
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