कविता तुम
तुम
तुम क्या गए इस जिंदगी से जान ले गए
खिलखिलातीसांसो की पहचान ले गए
बोल छुटे सब यहीं स्वर तान ले गए
झूमती खुशियों कामधुर गान ले गए।
जिन पड़ रहा है सब सुख चैन वार के
नियति के खेल हुए दावों से हार के।
इस तरह रीते नहीं थे कोई रात दिन
तुम अपने संग अधरों की मुस्कान ले गए।
किस तरह तन्हाई में बीतेगा यह सफर
तुम गए सब स्वप्न और अरमान ले गए ।