कविता….. घरवाली
कविता….. घरवाली
***************
नारी जब तक है कुंवारी!
लगती है वह बहुत प्यारी!!
जैसे ही आए वो घर में ,
बनकर के राजकुमारी !
घर से निकलना होता है मुश्किल,
कैद हो जाती है आजादी !!
कुछ दिन ही बहलाती बस दिल,
फिर तो रोज नींदें उड़ाती !!
बस !अपना ही फैशन जानें,
कर देती है जेब को खाली !!
कुछ बोलूं तो आंखें दिखाती,
लगती जैसे शेरोवाली !!
भूख लगे जब मांगू रोटी,
आती नहीं उसमें तरकारी !!
जब पूछूं में कहां है भाजी ,
कहती वो तो मैंने खाली !!
बात भूल गया सारी मैं,
करता था जो मर्दों वाली !!
अब तो गीदड़ भभकी रह गई ,
जब से आ गई घरवाली !!
………..
मूल रचनाकार .डॉ. नरेश “सागर”
इंटरनेशनल बेस्टीज साहित्य अवार्ड 2019 से सम्मानित