**कविता: आम आदमी की कहानी**
राशन की लम्बी लाइन, थकान से चूर काम हूँ,
किश्तों की मार में, पिसता सुबह और शाम हूँ,
रेल ,बस की धक्कामुकी और ट्रैफिक जाम हूँ ,
क्या करूँ में आदमी आम हूँ।
बिजली का बिल देख, माथे पर आती सलवटें,
बच्चों के अधूरे सपने लिए , रातें बदलता करवटें ,
अच्छे दिन की आस में राहें ताकता आवाम हूँ
क्या करूँ में आदमी आम हूँ।
शादी ब्याह के खर्चे, तोड़ते हैं मेरे सपने,
महंगाई की मार में, गुम हो जाते अपने,
खाहिशें खरीदने की, हर कोशिश में नाकाम हूँ,
क्या करूँ में आदमी आम हूँ।
ऑफिस की खींचा तानी , सुकून से वंचित घर,
हर कोने में संघर्ष, असफलता का डर,
आसमान से गिरा खजूर में अटका इल्जाम हूँ,
क्या करूँ में आदमी आम हूँ।
सपनों का टूटना, हर रोज की हकीकत,
जीवन के इस सफर में, फूटी अपनी किस्मत,
नेताओं के झूठे वादों का गुलाम हूँ,
क्या करूँ में आदमी आम हूँ।
रचनाकार -डॉ मुकेश ‘असीमित’