(कविता) !आते रहना !!
मैं ढ़ूंढ़ती रही
हर घडी प्रेम में
तुम मुझे बिरह की
पीडा में नज़र आये
आँसूं छलके
गालों पर आये
ठिठके फिर छलके
होठों तक छलक आये
मेरे होठों पर
लगा खा़रा कुछ
जैसे दर्द में भींगीं
नये कवि की कविता
एक पल तो
रूको ठहरो भी
अब न कहूंगी कुछ
तुम आते जाते रहना
स्वलिखित डॉ.विभा रजंन (कनक]