कविका मान
दोहा
दुर्वचनों का सामना ,करें धैर्य के साथ ।
उत्तेजित उर भावना ,रोक नवा दें माथ ।1
देह बनी स्यंदन सरिस,इंद्रिय घोड़े जान ।
बुध्दि सारथी खींचती ,मन को कविका मान ।।2
काम,क्रोध ,मद लालसा,नरक-पंथ की खान ।
राग-द्वेष को छोड़कर,करो प्रेम-प्रतिदान ।।3
शयन व्याधि की खान है ,जाग चलो प्रभु-धाम ।
सिंह, शाक्त,अहि सो रहे ,तुम जप लो हरि-नाम ।।4
लेकर धैर्य कबीर-सा ,भाग्य-द्वार खुद खोल ।
चाबी तेरे हाथ में ,करो सब्र का मोल ।।5
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी ,©®