कल रात सपने में प्रभु मेरे आए।
कल रात सपने में प्रभु मेरे आए,
भक्त वत्सल थे ,
वात्सल्य रस से नहाए,
मुझसे यह पूछा,
वत्स क्या कष्ट है,
विचलित क्यों इतना है,
इतना क्यों रुष्ट है,
मैं उनकी आभा देखता ही रह गया,
स्वप्न में स्वप्न है क्या ,
सोचता ही रह गया,
भावों के अतिरेक से मैं इतना भर गया,
शब्दों का ज्ञान मेरा सारा ही मर गया,
स्थिति को देख प्रभु पुनः मुस्कराए,
आनंद मूर्छा से मुझको जगाए,
आंखे खुली मैंने चेतनता पाई,
अपनी व्यथा मैने उनसे बताई ,
आपके आगमन से अस्तित्व मेरा,
नंदन वन हो रहा,
पर उसके ऊपर काले बादल मंडरा रहे,
शुभ , अशुभ , शास्त्रीय , अशास्त्रीय के घनघोर गर्जन से,
हमको डरा रहे,
भयभीत नहीं किंतु हम चिंतित अवश्य हैं,
मन में आशंका पुनः पुनः आती है,
शंका वह विचलित बहुत कर जाती है,
आनंद अतिरेक में कहीं अनुचित तो न कर रहे,
अमंगल , अशोभित कुछ दूषित तो न कर रहे,
प्रभु की मुस्कराहट तनिक गहराई,
स्नेह सिक्त वाणी से स्वर सुधा आई,
सारा विवाद प्रेम के कारण है,
जो कुछ भी हो रहा सब कुछ सकारण है,
जीवन में मानव के मंथन आवश्यक है,
गहनतर से गहनतर चिंतन आवश्यक है,
ज्ञानी जन सदैव प्रश्नों में रहते हैं,
व्याख्या के संसारों में बहुधा वे रमते हैं,
अपने आनंद की सरिता को बहने दे,
उनको विवादों के रस में तू रमने दे,
भक्तों की भक्ती से मन मेरा हर्षित है,
जितने वे पुलकित हैं,
मन मेरा पुलकित है,
आंधी , बवंडर, प्रभंजन थम जाएगा,
भक्ति में डूबा यदि तू मुस्कराएगा,
मर्यादित जो बात करें उनके वचन में हूं,
भक्त मेरे मन में मैं भक्तों के मन में हूं।
Kumar Kalhans