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24 May 2023 · 1 min read

कल्पनाओं की कलम उठे तो, कहानियां स्वयं को रचवातीं हैं।

स्याह रात की चलनी से छन, वो भोर जगमगाती है,
कारवाओं में तन्हा भटके, तो मंजिल मिल हीं जाती है।
अंधकार की धुरी से, जो रौशनी हर पल टकराती है,
बिना डूबे उन अंधेरों में, हमें रौशनी भी कहाँ अपनाती है?
माटी की हर परत, एक पृथक इतिहास सुनाती है,
सभ्यताओं को नभ पर चमका, अंततः उसे भी माटी बनाती है।
छणभंगुरता की शाश्वता, जीवन क्या खूब समझाती है,
हम भविष्य की कल्पना में आज गवांते हैं, ये आज को अतीत बना तरसाती है।
आघातों की श्रृंखला, हमारे हृदय की कड़वाहट बढ़ाती है,
पर पीड़ा में लिपटकर हीं तो, व्यक्तित्व भी परिपक्वता को पाती है।
शीतल बयार तन को छुए तो, मन की शीतलता बढ़ाती है,
उत्पत्ति उसकी भी देख ज़रा, जो तूफानों का निष्कर्ष कहलाती है।
कल्पनाओं की कलम उठे तो, कहानियां स्वयं को रचवातीं हैं,
पर यथार्थ के अनुभवों की आधारशिला हीं, कल्पनाओं को पंख दे पाती हैं।

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