*कलियुग*
सच्चाई की जीत और झूठ की हार –
कलियुग में हो गयी है यह उक्ति बेकार –
भलाई इसी में है कि हम सब कर लें
अब इस तथ्य को स्वीकार –
यहाँ सफलता के लिए जरुरी नहीं है
कड़ी मिहनत का स्वेद –
और भी हैं कई सरल रास्ते
साम – दाम – दंड – भेद –
उच्च आदर्शों का पालन करना
इस युग में आसान नहीं है –
ठोकर खाकर गिरता है वह,
जिसे दोस्तों में छिपे
दुश्मनों की पहचान नहीं है –
सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य है जबतक –
मिलते हैं बहुतेरे शुभचिंतक –
पर जरा सी दुःख की बदली छाये –
तो बन जाते हैं अपने भी पराये –
जो हर कदम पूछ कर चला करते थे,
वो भी देने लगते हैं नसीहत –
जो किसी काबिल नहीं थे,
वो भी करने लगते हैं फजीहत –
ईमान-धर्म की बात करे कौन ? –
है स्वार्थ के आगे सबकुछ गौण –
जमीर सब का बिका हुआ है –
ताकतवर के पंजों पर
न्याय का पलड़ा टिका हुआ है –
तुलसीदास ने सदियों पहले
इन बातों का ऐलान किया था,
कलियुग में क्या-क्या हो सकता है
इसका खूब बखान किया था।