कलियुग में शान्ति स्थापना
कितने बुद्ध जायेंगे परिवारों को छोड़ कर ?
कितने राम लेंगे बनवास रावणों के संहार को ?
कितनी महाभारत लड़ी जायेगी दुर्योधन के अहंकार पे ?
कितने कृष्ण जनम लेगें कंस को ललकार कर ?
युग बदले कलियुग आया
फिर भी कुछ बदल ना पाया ,
वही लालच वही द्वेष
रिश्ते बैठे बदल कर भेष ,
ये कलियुग बड़ा जटिल है
हर अपना बड़ा कुटिल है ,
कलियुग ने अपनी चाल से
दसवें अवतार को रोक दिया ,
कोई समझ ना पाया
इसने ऐसा खेल किया ,
हर घर में दुर्योधन है
हर रिश्ते में कंस
कैसे होगी शान्ति स्थापित
जब बचेगा ना कोई नेक अंश ,
आओ हम सब लड़ते हैं
हर घर के दुर्योधन से
रिश्ते के हर कंस से ,
नही कहेगें बार – बार
प्रभु कब लोगे दसवाँ अवतार ,
नव अवतार में ही ढ़ूढ़ लेगें
तुम्हारे अवतारोंं का सार ,
अब बारी हमारी है
हमको ही करनी
बेलगाम अशांति की सवारी है ,
चलो लेते हैं प्रण हम
तब तक ना लेगें दम हम
जब तक लगाम खींच कर
काबू ना कर लें इसको हम ,
चलो मिल कर इसको विस्थापित करते हैं
प्रेम – लगाव और सच्चे अपनेपन से
फिर से हम सब शान्ति स्थापित करते हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 18/10/2019 )