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11 Feb 2024 · 1 min read

कला

कला
कला बिना जग सूना लागे ,
मानव,पूंछहीन पशु के है समान ,
ज्ञान यदि पहचान दिलाता ,
कला ही है जो देता सम्मान।

कला से विकृति को ढक लो यारो ,
कला विरक्ति वैराग्य समान ।
कला ही है प्रेम का रूप अनोखा ,
कला को तुम मानो भगवान ।

कला हुनर है जीना सिखलाता ,
कलाकार का रखता मान ।
काम क्रोध को दूर ही रखता ,
अहंकारी को नहीं इसका ज्ञान ।

कला कोई भी दिल में बसा लो ,
गीत संगीत हो या चित्रकारी ज्ञान ।
कला अनेकों है इस जग में ,
जिसने परखा वो हुआ धनवान ।

कला से है ईश्वर का नाता ,
डमरू है शिव की पहचान ।
वीणा झंकृत करता सदा मन को ,
कला से ही होता प्रभु अंतर्ध्यान ।

मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार कर्ण

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