कलयुगी धृतराष्ट्र
आज भी समाज में कई ऐसे कलयुगी धृतराष्ट्र हैं,
जो नहीं कर पाते ,
सामाजिक रूढ़ियों का खुलकर विरोध,
समाज की कुरीतियों के समक्ष अंधे बनकर,
जबरन उन्हें स्वीकार करते रहते हैं।
…………………
ये धृतराष्ट्र,
माँ – बेटी – बहिन की लाज नहीं बचा पाते, और,
न ही सामाजिक सरकारों के प्रति चिंतित होते हैं,
समाज को न कुछ दे पाते हैं और,
न ही समाज से कुछ ग्रहण कर पाते हैं।
समाज में इनका होना या न होना,
शून्य के बराबर है।
…………..
समाज के नेक कार्यों में अपनी असफलता की कहानी,
बड़ी हिम्मत से जरूर सुनाना पसंद करते हैं,
समाज की तो बात अलग हैं,
यहां तक परिजन भी ,
इनकी कहानियां नहीं सुनना चाहते हैं।
…………….
कलयुगी धृतराष्ट्र की सारी उम्र निकल जाती है,
दूसरों के दोष निकालने में, और,
दूसरों की कमियां ढूंढने में,
और अंत में,
अपने में भी कमियां ढूंढना शुरू कर देते हैं,
ऐसे कलयुगी धृतराष्ट्र।
……….
आज के समय में कलयुगी धृतराष्ट्र बनना आसान है,
चूंकि, ऐसे लोग जिंदगी भर कोई काम नहीं करते,
करते हैं तो सिर्फ चुगलबाजी और चमचागिरी,
सारी उम्र बीत जाती है,
इस प्रकार के कृत्य में, और,
अंत में समाज भी इन्हें मान्यता नहीं देता।
घोषणा – उक्त रचना मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है। यह रचना पहले फेसबुक पेज या व्हाट्स एप ग्रुप पर प्रकाशित नहीं हुई है।
डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।