कलम
सूरज की पहली किरण के साथ
कुछ कहने को कुछ लिखने को
लालायित मैं उत्साहित हो उठी
पर कलम चुप थी
कुछ दुनियाँदारी के बोझ तले मैं
कुछ अप्रकट अहसासों मे दबी मैं
अशांत भावनाओं के बेगों में घटी
पर कलम चुप थी
कुछ खोज रही थी शून्य में ताकते
जा टिकी दृष्टि पास पडे अखबार पे
शुरू स्याही बद्ध तथ्यों का मंथन
पर कलम चुप थी
नेह भरी कोमल यादों का चिंतन
अपना सा कहने बाले शब्दों का जादू
शुरू उद्वेगों का मचलकर उठना
पर कलम चुप थी
शब्द भी सिहर कर सिसकने को बेताब थे
आँसू रोकर कहने को अपना हाल बेहाल थे
भावनाओं के वेग में अग्यात दोहरायें पर थे
पर कलम चुप थी
डॉ मधु त्रिवेदी
आगरा