कर सोलह श्रंगार प्रकृति, गीत प्रेम के गाएगी
ठंडी ठंडी हवा शरद की, भेद रही मेरे मन को
भीनी भीनी धूप सुनहरी, भाती है मेरे तन को
सरसराहट आज सखी, पीपल के पुराने पातों में
दस्तक दे रहा है बसंत, प्रीतम की मीठी बातों में
ठंडी मस्त पवन के झोंके, संदेश बसंती लाए हैं
नाना सुमन खिले धरती पर, मेरे मन को अति भाए हैं
आएगा बसंत का मौसम, कली कली खिल जाएगी
नई उमंगे नई तरंगे, गीत धरा ये गाएगी
कर सोलह सिंगार प्रकृति, गीत प्रेम के गाएगी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी