कर जाए कंटक प्रस्थान सदा !
देशद्रोहियों की अतिबहुलता को दग्ध सदा कर डालो धीर ;
भारत की भाग्य विथिकाओं में, सतत् स्वत्व समेटे गम्भीर !
समर भयंकर भारी है , ले पुरुषत्व विराट आह्वान करो ;
पुण्यप्रसूता की कुसुमों की रक्षा हित , ले दिव्य भाल , प्रस्थान करो !
करो प्रस्थान सदा संशय छोड़ , धीर मोह त्यागो तुम ;
संतप्त धरणी की ताप हरो , नहीं देर , त्वरित जागो तुम !
मातृभूमि की रक्षा हित पुनः, तूझे प्राण मोल देना होगा ;
शांति समरसता की शुचिता पर , संतुलित तोल सदा देना होगा ।
विधि शास्त्र सम्मत शासन का कर डालो आह्वान सदा ;
कंटक भारतभूमि की आंचल से , कर जाए प्रस्थान सदा !
अखण्ड भारत अमर रहे !
आलोक पाण्डेय