“कर्म का मर्म”
“कर्म का मर्म”
हर रोज सवेरा होता है,
फिर मन व्यथित क्यों होता है ;
करो सदा अच्छा कर्म वर्ना,
इंसान खुद ही का पाप धोता है।
“कर्म का मर्म”
हर रोज सवेरा होता है,
फिर मन व्यथित क्यों होता है ;
करो सदा अच्छा कर्म वर्ना,
इंसान खुद ही का पाप धोता है।