कर्माधीन मनुज जीवन है
कर्माधीन मनुज जीवन है, सोच समझ अपना रे
कर्म ही तो है मुक्ति बंधन, मत राह भटक जाना रे
कर्म उठाते कर्म गिराते, अधोगति ले जाते
पुरस्कार सब कर्म से मिलते, कर्म ही सजा दिलाते
कर्मा अधीन मनुष्य जीवन है, सोच समझ अपना रे
कर्म की महिमा है न्यारी, जन्म जन्म भटकाते
कर्म का ही खेल है सारा, राजा से रंक बनाते
ऊंचाई पर ले जाते, गर्त में हमें गिराते
शुभ और अशुभ जीवन में, कर्म ही हमें दिलाते
कर्मा अधीन मनुज जीवन है, सोच समझ अपना रे
सुरेश कुमार चतुर्वेदी