करवाचौथ
चंद्रमा देखकर जल चढाती रही
मैं प्रणय गीत सँग गुनगुनाती रही
भाल सिंदूर बिंदी चमकते रहें
मैं दुआ बस ये रब से मनाती रही
मैं पिया की हो लंबी उमर इस लिए
प्यार से निर्जला व्रत निभाती रही
चाँदनी रात में बजते कंगन रहे
पायलें पाँव में छनछनाती रही
भूखी प्यासी मुझे इस तरह देखकर
मेरी चिंता सजन को सताती रही
दूर जब जब सजन काम से ही गए
चाँद को मीत अपना बनाती रही
सुख मिले या हो दुख साथ में रह सदा
‘अर्चना’ प्रेम गंगा बहाती रही
डॉ अर्चना गुप्ता