करपात्री जी का श्राप…
करपात्री जी का श्राप…
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श्राप फलित होता है ,
संतो का श्राप फलित होता है…
भून दिया था गोलियों से पल में ,
जिसने संसद को घेरा था ?
थे वो साधु संत निहत्थे ,
संसद में फिर डर कैसा था ?
लहुलुहान वो गौरक्षक संत थे ,
मानवता का दारुण क्षण कैसा था?
रोती है तब धरा गगन भी ,
जब संतो का दिल रोता है।
श्राप फलित होता है ,
संतो का श्राप फलित होता है…
गौ गंगा गीता गायत्री ,
संस्कृति का आधार सदियों से ।
वादा करके मुकरा क्यों था ?
जो था संतो का मांग वर्षों से।
आशीर्वाद लिया करपात्री जी से ,
पाना था, सत्ता किस्मत से।
होना था जो, वही हश्र हुआ है,
जब जब मानव यती को छलता है।
श्राप फलित होता है ,
संतो का श्राप फलित होता है…
झाँको तुम अपने अतीत में ,
सदियों से ये सनातन धरती।
धड़कन में इसके बसता है ,
गौमाता है पुरातन संस्कृति।
गौमाता की अर्चना पूजा ,
गोबर लेप से शुद्ध आंगन है।
रोक सका जो न, इसकी हत्या ,
वो नृप, खुद का ही हंता है ।
श्राप फलित होता है ,
संतो का श्राप फलित होता है…
याद करो,वो दिन और तिथि को,
जब मृत्यु अकाल हुआ था ।
तिथि गोपाष्टमी का दिन था वो ,
फलित पुराना श्राप हुआ था।
मत भुलो कोई अपने कर्मों को ,
हमें यही पर चुकाना होगा ।
सत्ता दिए हैं जब रक्षा की खातिर ,
हर माँ की रक्षा करना होगा।
लाओ शीघ्र ही, गौरक्षक बिल को ,
तेरे पास भी वो मौका है ।
श्राप फलित होता है ,
संतो का श्राप फलित होता है…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०२ /०१/२०२३
पौष,शुक्ल पक्ष,एकादशी,सोमवार
विक्रम संवत २०७९
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