“कयामत”
कयामत किसे कहूँ?
वो तेरे बेइन्तहा इन्तजार को
कि वस्ल की रात को,
तेरे हुस्न के शबाब को
कि नूर-ए-आफ़ताब को।
उस हसीन शाम को
कि हम पे लगे इल्ज़ाम को,
तेरी चिट्ठी वो पयाम को
कि हुए हम उस बदनाम को।
सुकून के उस सहरा को
कि बेकरार इस जां को,
तेरे लबों की लाली को
कि गेसुओं की छाँ को।
समन्दर की लहरों को
कि जमीं-आसमां के मिलन को,
इस दिल की अगन को
कि बारिश की चुभन को।
मेरी उस इल्तिज़ा को,
कि तेरी उस कुबूल को,
जमाने की रुसवाई को
कि उल्फ़त के उसूल को।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त- 2023